स्वास्थ्य युक्तियाँ: बरसात के मौसम में हमें अपने खान-पीन और जीवनशैली का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है. चूंकि इस मौसम में संक्रमण फैलने की संभावना बहुत अधिक होती है, सो जरा सी असावधानी हमें बीमार डाल सकती है. जानते हैं, विशेषज्ञ से कि इस मौसम में हमें अपने खानपान और जीवनशैली को लेकर किस तरह की सावधानी बरतने की जरूरत है.
प्रो महेश व्यास
डीन पीएचडी, अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआइआइए), दिल्ली
हमारे शरीर के स्वस्थ बने रहने में आहार-विहार (भोजन और जीवनशैली) के साथ ऋतुचर्या का बहुत महत्व है. ऋतुचर्या, यानी ऋतुओं के अनुसार खाद्य पदार्थों का सेवन. ऐसा करना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि एक ऋतु के समाप्त होने और दूसरी ऋतु के आरंभ के समय व्यक्ति के बीमार होने की संभावना सबसे अधिक रहती है. यह अवधि 14 दिनों की मानी जाती है, इस अवधि को ऋतु संधि कहा जाता है.
ऋतुओं के साथ मनुष्य के स्वास्थ्य का गहरा संबंध
हमारे शरीर में भिन्न-भिन्न प्रकार के दोष होते हैं. प्रत्येक ऋतु में हमारे शरीर में उपस्थित इन दोषों में बदलाव होने लगता है, यह एक सामान्य प्रक्रिया है. वैज्ञानिक भाषा में इसे ‘सर्काडियन रिदम’ कहते है. इसे ऐसे समझें कि किसी एक ऋतु में हमारे शरीर में किसी एक दोष में वृद्धि हो जाती है, जबकि दूसरा शांत हो जाता है. वहीं दूसरे ऋतु में कोई दूसरा दोष बढ़ जाता तथा अन्य दोष शांत हो जाते हैं. इसीलिए कहा जाता है कि मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ ऋतुओं का गहरा संबंध है. ऋतु के अनुसार आहार-विहार अपनाने से स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है तथा हम रोगों से बचे रहते हैं. भारत में छह ऋतुएं हैं- माघ-फाल्गुन में शिशिर, चैत्र-वैशाख में बसंत, ज्येष्ठ-आषाढ़ में ग्रीष्म, श्रावण-भाद्रपद में वर्षा, आश्विन-कार्तिक में शरद और मार्गशीर्ष-पौष में हेमंत ऋतु होती है. वर्तमान समय ग्रीष्म ऋतु का है और अगले महीने से वर्षा ऋतु आरंभ हो जायेगी. सो इस बार चर्चा वर्ष ऋतु के आहार-विहार की करते हैं. वर्षा ऋतु में हमें अपने आहार-विहार को लेकर कुछ बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है. इस ऋतु में वातावरण में हरियाली के साथ-साथ नमी और रूक्षता भी होती है. नमी के कारण ही इस ऋतु में मच्छर-मक्खी आदि कीट-पतंग उत्पन्न होते हैं, जो रोग उत्पन्न करने का प्रमुख कारण हैं.
चूंकि इन दिनों सूर्य की गर्मी बढ़ जाती है और शरीर में पित्त दोष का संचय होने लगता है, इससे हमारी शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है. इन्हीं कारणों से शरीर में आम दोष का बनना, मलेरिया और फाइलेरिया बुखार, जुकाम, दस्त, आंत्र शोध (आतों में सूचन), आमवात (रुमेटाइड अर्थराइटिस), संधिवात (ऑस्टियोअर्थराइटिस), वात रक्त (गाउट), संधियों में सूजन, उच्च रक्तचाप, त्वचा विकार (फुंसियां, दाद, खुजली) आदि अनेक व्याधियों के उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए इस मौसम में आहार-विहार पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है.
इन खाद्य पदार्थों का करें सेवन
- वर्षा ऋतु में प्रत्येक व्यक्ति को हल्के, सुपाच्य, ताजे, गर्म और पाचक अग्नि को बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए.
- इस मौसम में ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जो वात दोष का शमन करने वाले हों. इस दृष्टि से गेहूं, जौ, शालि, साठी के चावल जैसे पुराने अनाज, खिचड़ी, दही, मट्ठा, मक्का, सरसों, राई, मूंग की दाल आदि का सेवन करना सही रहता है.
- खीरा, लौकी, तोरई, टमाटर आदि सब्जियां और सब्जियों का सूप तथा सेब, केला, अनार, नाशपाती और पके देशी आम (आम पका, मीठा और ताजा होना चाहिए) खाना चाहिए. घी व तेल से बने नमकीन पदार्थ का सेवन भी उपयोगी रहता है.
- तक्र (दही की लस्सी) में त्रिकटु (सोंठ, पिप्पली और काली मिर्च), सेंधा नमक, अजवायन तथा जीरा आदि डाल कर पीने से पाचन शक्ति ठीक रहती है.
- वर्षा ऋतु में शहद का सेवन लाभदायक होता है, किंतु इसे कभी भी गर्म करके न लें.
- वात और कफ दोषों को शांत करने के लिए तीखा, अम्ल और क्षार पदार्थ का सेवन करना लाभप्रद होता है. पर याद रखें, इनका सेवन सीमित मात्रा में ही करना चाहिए. अम्ल, नमकीन और चिकनाई वाले पदार्थों (घी व मक्खन से बने) का सेवन करने से वात दोष का शमन करने में सहायता मिलती है, विशेष रूप से उस समय जब अधिक वर्षा और आंधी से मौसम ठंडा हो गया हो.
- रसायन के रूप में हरड़ का चूर्ण, सेंधा नमक के साथ मिलाकर लेना चहिए.
- इस ऋतु में जल की शुद्धि का विशेष ध्यान रखना चाहिए. पानी को सदैव उबालकर ठंडा करने के बाद ही पीना चाहिए. पानी उबालते समय उसमें तुलसी पत्र, दालचीनी, काली मिर्च डालने से लाभ होता है.
इनका भी रखें ध्यान
- दिन में दो बार स्नान करें.
- साफ-सुथरा और हल्का वस्त्र धारण करें.
- भूख लगने पर ही भोजन करें.
- घर के आसपास सफाई रखें.
इन खान-पान और आदतों से दूरी बनाना जरूरी
वर्षा ऋतु में पत्ते वाली सब्जियां (पत्तागोभी, फूलगोभी), ठंडे व रूखे पदार्थ, चना, जौ, मटर, मसूर, ज्वार, आलू, कटहल और पानी में घोलकर सत्तू का सेवन हानिकारक होता है. ये सभी आहार वात दोष वर्धक होते हैं. वर्षा ऋतु में पित्त दोष का संचय होना आरंभ हो जाता है, इसलिए इस समय बेसन से बने पदार्थ, तेज-मिर्च मसाला युक्त, बासी और पित्त बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए. भारी भोजन, बार-बार भोजन करना, भूख न होने पर भी भोजन करना आपको बीमार कर सकता है. वर्षा ऋतु में न ही दिन में सोना चाहिए, न ही रात में जगना चाहिए. धूप में घूमना, अधिक पैदल चलना एवं अधिक शारीरिक व्यायाम भी इन दिनों हानिकारक होता है.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.