बच्ची ने सुनी थी टिक-टिक की आवाज, फिर हुआ धमाका: मालेगांव ब्लास्ट के पीड़ितों का दर्द; कहा- करकरे जिंदा होते तो मिल चुका होता इंसाफ – Madhya Pradesh News

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ये कहना है ऐजाज अहमद का, जो मालेगांव बम ब्लास्ट के चश्मदीद है। अहमद कहते हैं कि जिन लोगों के परिजन ब्लास्ट में मारे गए वो पिछले 17 सालों से इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं।

दरअसल, 8 मई यानी गुरुवार को एनआईए की स्पेशल कोर्ट मालेगांव बम ब्लास्ट केस में फैसला सुनाने वाली थी, लेकिन अब 31 जुलाई तक फैसला टाल दिया गया है। इस मामले में भोपाल की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत 7 आरोपियों के खिलाफ आतंकी साजिश, हत्या, धार्मिक उन्माद फैलाने के आरोप हैं।

दैनिक भास्कर की टीम ने मालेगांव पहुंचकर पीड़ित परिजनों के अलावा घटना के चश्मदीदों से बात की। ये समझा कि 29 सितंबर 2008 को रात साढ़े 9 बजे जब ब्लास्ट हुआ था उसके बाद क्या हालात थे। पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट

चश्मदीदों की जुबानी जानिए.. क्या हुआ था उस दिन

तीन मस्जिदों के लोग इकट्ठा हुए थे मालेगांव के बिक्कू चौक पर ये ब्लास्ट हुआ था। भास्कर की टीम जब बिक्कू चौक पहुंची, तो यहां काफी चहल- पहल थी। जिस जगह ब्लास्ट हुआ था उस जगह के आसपास तीन मस्जिदें हैं। नूरानी मस्जिद, अहले अदीफ मस्जिद और कसाबबाड़ा मस्जिद। सभी मस्जिदें घटनास्थल से 100 से 200 मीटर की दूरी पर हैं।

ब्लास्ट में घायल लोगों को कोर्ट पेशी पर ले जाने वाले डॉ. इकलाख अहमद कहते हैं कि हर दिन शाम के वक्त यहां इतनी भीड़ होती है कि ट्रैफिक जाम वाली स्थिति बन जाती है। आप सोचिए 29 सितंबर 2008 को जिस दिन ब्लास्ट हुआ था वो रमजान का महीना था। आखिरी नमाज पढ़ने के बाद तीनों मस्जिदों के लोग इसी चौक पर चाय पीने इकट्ठा हुए थे।

ब्लास्ट में 6 मौतों के अलावा जो 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे वो बेहद गंभीर घायल थे। किसी का हाथ टूटा हुआ था तो किसी का गला फटा हुआ था।

यही वो मस्जिद है जिसके सामने ब्लास्ट हुआ था।

यही वो मस्जिद है जिसके सामने ब्लास्ट हुआ था।

गाड़ी पर लिखा था KNG बिक्कू चौक से करीब 400 मीटर दूर जावेद अंसारी की फोटोकॉपी की दुकान है। वह हादसे के चश्मदीदों में से एक है। जावेद कैमरे पर बात करने में सहज नहीं थे। उनका कहना था कि अगर मैं मीडिया में आया तो पुलिस के लोग यहां आने लगेंगे। 17 साल पहले घटना के बाद हमें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा था।

खुद के खर्च पर गाड़ी बुक कर मुंबई जाना पड़ता था, क्योंकि हम लोग घटना के चश्मदीद थे। अब मैं फिर से परेशान नहीं होना चाहता। जावेद ने ऑफ कैमरा बताया कि घटना से पहले वो गाड़ी ट्रांसपोर्ट ऑफिस के पास पार्क की गई थी। उसके आगे के तरफ ‘केजीएन’ लिखा हुआ था। उसे कौन और कब पार्क कर गया? इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है।

अपना जला हुआ हाथ दिखाते जावेद अंसारी। उनकी दुकान बिक्कू चौक के पास ही है।

अपना जला हुआ हाथ दिखाते जावेद अंसारी। उनकी दुकान बिक्कू चौक के पास ही है।

बच्ची ने सुनी थी टिक-टिक की आवाज जिस ट्रांसपोर्ट ऑफिस के सामने ब्लास्ट हुआ उसी के सामने निसार डेयरी है। दुकान के मालिक ऐजाज अहमद भी ब्लास्ट में घायल हुए थे। ऐजाज कहते हैं कि रमजान की वजह से चौक पर बहुत ज्यादा भीड़ थी। शाम को करीब 4 से 5 बजे के बीच कोई दुकान के सामने बाइक पार्क करके चला गया। उस वक्त सीसीटीवी कैमरा जैसी सुविधा तो थी नहीं, समझ नहीं आया कि गाड़ी किसने पार्क की?

कुछ देर बाद चौक पर भीड़ बढ़ती गई। एक 9-10 साल की बच्ची उस गाड़ी के पास से गुजरी। लोग बताते हैं उस बच्ची ने गाड़ी की डिग्गी से टिक-टिक की आवाज सुनी थी। उसने लोगों से कहा भी, मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया। जब बाइक में विस्फोट हुआ तो बाइक के साथ बच्ची भी 20 फीट ऊपर उछल गई थी।

बच्ची ने सुनी थी टिक-टिक की आवाज, फिर हुआ धमाका: मालेगांव ब्लास्ट के पीड़ितों का दर्द; कहा- करकरे जिंदा होते तो मिल चुका होता इंसाफ - Madhya Pradesh News

हादसे का टाइम बताने वाली घड़ी और करकरे मार्ग ऐजाज अहमद की दुकान पर दो घड़ियां हैं। एक नई घड़ी जो समय के साथ चल रही है, मगर एक घड़ी ठहरी हुई है। ऐजाज से इस घड़ी के बारे में पूछा तो बोले ये 17 साल से ठहरी है। जिस दिन धमाका हुआ था उस दिन इस घड़ी में कोई टूट फूट नहीं हुई। कांच भी सलामत था, मगर इसका सेकेंड काटा पता नहीं कहां चला गया?

ठीक 9 बजकर 35 मिनट पर जाकर ये घड़ी रुक गई। मैंने तब से इसे सुधरवाया नहीं है। ये ब्लास्ट में मारे गए लोगों की याद में लगा रखी है। वहीं बिक्कू चौक से शहर की तरफ गुजरने वाली एक सड़क का नाम एटीएस चीफ हेमंत करकरे के नाम पर है। रास्ते की शुरुआत में उनके नाम पर एक छोटा स्मृति द्वार भी बनाया गया है।

इसका निर्माण मालेगांव महानगर पालिका ने किया है। हालांकि स्मृति द्वार के आसपास फैला कचरा इसकी दुर्दशा की कहानी बयां करता है।

जिस चौक पर ब्लास्ट हुआ वहां जाने वाले रास्ते का नाम एटीएस चीफ के नाम पर रखा गया है।

जिस चौक पर ब्लास्ट हुआ वहां जाने वाले रास्ते का नाम एटीएस चीफ के नाम पर रखा गया है।

घायलों का इलाज करने वाले डॉक्टर बोले- रोंगटे खड़े हो गए थे ब्लास्ट के बाद घायलों को मालेगांव के जाने माने फरहान हॉस्पिटल ले जाया गया था। अस्पताल के डॉक्टर फरहानी सईद अहमद कहते हैं कि किसी डॉक्टर ने ब्लास्ट से पीड़ितों का इलाज नहीं किया होगा तो वो शायद कल्पना भी नहीं कर सकता कि उस समय के हालात कैसे होते हैं? अस्पताल की कैपेसिटी 50 बैड की थी लेकिन उस वक्त एक साथ 100 गंभीर घायल मरीज अस्पताल पहुंचे थे।

कोई लगातार ब्लीडिंग कर रहा था, किसी का हाथ गायब था किसी का पैर टूट चुका था। सभी चाह रहे थे उनका इलाज पहले हो। अस्पताल में चीख पुकार मची हुई थी। उस वक्त एम्बुलेंस और ट्रांसपोर्टेशन की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। कोई मोटर साइकिल, कोई ठेला गाड़ी तो कोई बेडशीट में लपेटकर घायलों को अस्पताल पहुंचा रहा था।

घायलों में बहुत से छोटे-छोटे बच्चे भी थे। वो दिन याद कर आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ये कोई प्राकृतिक घटना नहीं थी। जिन लोगों ने ये किया वो इंसान नहीं थे।

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अब जानिए क्या कहते हैं मृतकों के परिजन..

हारुन शाह की पत्नी हादसे के बाद से ही मेंटली डिस्टर्ब बम ब्लास्ट में 6 लोग मारे गए थे। भास्कर ने इनमें से तीन लोगों से बात की। सबसे पहले पहुंचे कुमार वाड़ा। यहां रहने वाले 70 साल के हारुन शाह की ब्लास्ट में मौत हो गई थी। संकरी गलियों से होते हुए जब हम शाह के घर पहुंचे, तो देखा कि एक बुजुर्ग महिला खाट पर लेटी हुई है। कुछ भी पूछने पर जवाब नहीं दे रही है। इसी बीच वहां हारुन की बड़ी बहू नसीम शाह पहुंची।

नसीम ने बताया कि ससुर घायल होने के 14 दिन तक वो हॉस्पिटल में एडमिट रहे। उसके बाद उनका इंतकाल हो गया। नसीम कहती हैं कि ससुर की मौत के बाद से सास सुघराबी की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। पिछले 17 साल से वो सदमे में है। अब तो उनकी हालत ऐसी है कि वो किसी भी बात का जवाब नहीं देती।

मेरे ससुर के 8 बच्चे थे। वो ही पूरे घर को चलाते थे। उनके जाने के बाद हमारी माली हालत इतनी खराब हुई कि अब तक नहीं सुधर पाई है। उनकी मौत के बाद 2 बच्चों की शादी भी नहीं हो पाई है।

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10वीं के बाद भाई कमाने लगा था ब्लास्ट में 19 साल के सैय्यद अजहर की भी मौत हो गई थी। अजहर के भाई सैय्यद अबरार ने कहा- भाई मुझसे करीब डेढ़ साल छोटा था। अंजुमन चौक पर ताज लेडीज स्टोर में काम करता था। उसका रोज का नियम था कि वो बिक्कू चौक की मस्जिद में अब्बू के साथ नमाज पढ़ने जाता था। अब्बू घर लौट आते थे और वो चाय पीकर ड्यूटी पर चला जाता था।

पास ही बैठी अजहर की मां मेहजबी कहती है- उसने आखिरी बार मेरे साथ खाना खाया था, फिर नमाज पढ़ने गया। वो वापस लौटकर नहीं आया। इतना कहकर मेहजबी के आंसू टपकने लगते हैं। रोते-रोते बताती है कि मेरा बच्चा बहुत नेक और मेहनती था। कम उम्र में ही घर का खर्च उठाने लगा था। दिन भर काम में व्यस्त रहता था।

रात में लेडीज जनरल स्टोर में काम करता था। दिन के वक्त एसी कंप्रेसर सुधारता था। अबरार कहते हैं कि मैं तो बस यही मांग करूंगा कि साध्वी प्रज्ञा सिंह और उसके साथियों को सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए। उनकी सजा फांसी से कम नहीं होनी चाहिए।

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पिता आज भी डायरी में रखते हैं 10 साल की बेटी की तस्वीर हादसे में जो तीसरी मौत हुई थी वो 10 साल की फरहीन उर्फ शगुफ्ता शेख लियाकत की हुई थी। शगुफ्ता के पिता शेख लियाकत मलयुद्दीन पहले धमाके वाले बिक्कू चौराहे के पास ही रहते थे। पांच साल पहले मालेगांव के हीरापुर इलाके में शिफ्ट हो गए। शेख लियाकत ने बताया कि मैं रात के वक्त घर पर था। मेरी 4 बेटियों में सबसे छोटी बेटी भजिया लाने चौक की एक दुकान पर गई थी।

इसी बीच एक धमाके की आवाज आई। मेरे घर की छत पर छर्रे गिरे थे। बाहर भगदड़ मच गई थी। मेरी पत्नी बोली अपनी बच्ची भी गई है बाहर जाकर देखिए। मैंने उससे कहा- अपनी बच्ची बड़ी है वो आ जाएगी। तभी बहुत से लोग घर आकर बोले कि वहां मृतकों में एक बच्ची भी है। मैं वहां पहुंचता तब तक कुछ लोग उसे हॉस्पिटल ले गए।

अपनी बेटी की तस्वीर दिखाते लियाकत अली। कहते हैं आज जिंदा होती तो 27 साल की होती।

अपनी बेटी की तस्वीर दिखाते लियाकत अली। कहते हैं आज जिंदा होती तो 27 साल की होती।

हॉस्पिटल में मुझे मेरी बच्ची को देखने नहीं दिया। 2 दिन बाद उसकी बॉडी मिली। बात करते करते शेख लियाकत ने अपनी डायरी निकाली और उससे अपनी बेटी की तस्वीर निकाल कर दिखाने लगे। वो पिछले 17 साल से अपनी पॉकेट डायरी में अपनी बेटी की तस्वीर लेकर घूम रहे हैं।

लियाकत ट्रक ड्राइवर थे। पिछले साल बायपास सर्जरी के बाद उन्होंने काम छोड़ दिया है। अब उनके 2 बेटे घर चला रहे हैं। लियाकत कहते हैं एटीएस चीफ हेमंत करकरे ने पूरे मामले का खुलासा कर दिया था, हम उनके शुक्रगुजार हैं। मालेगांव ब्लास्ट के 2 महीने बाद 26/11 के आतंकी हमले में वो शहीद नहीं हुए होते तो अबतक हमारे साथ इंसाफ हो जाता।

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2001 के बाद से मालेगांव में कोई फसाद नहीं हुआ सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद मुस्तकीम कहते हैं कि मालेगांव पावरलूम इंडस्ट्री के लिए पहचाना जाता है। यहां कपड़े बनाए जाते हैं। कपड़े बनाने वाली कम्युनिटी मुस्लिम है, लेकिन कपड़े बेचने वाली व्यापारी कम्युनिटी हिंदू हैं। ये शहर ताने बाने का शहर है। जहां दो समुदायों के बीच व्यापार होता है वहां किसी तरह का फसाद नहीं होता।

वे कहते हैं कि मालेगांव से गुजरने वाली मौसम नदी के एक तरफ वाले हिस्से को आउटर मालेगांव कहते हैं और दूसरे हिस्से को शहरी मालेगांव। आउटर मालेगांव में 20 फीसदी हिंदू रहते हैं। वहीं शहरी मालेगांव में 80 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है। ये शहर धार्मिक है, लेकिन कट्टर नहीं है। मालेगांव में 2001 के बाद कोई फसाद नहीं हुआ।

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साध्वी ने कहा- सत्यमेव जयते पर मेरा विश्वास गुरुवार को पेशी पर कोर्ट पहुंची प्रज्ञा ठाकुर ने कहा- आज डिसीजन होना था, ऐसा नहीं है। जज साहब ने तारीख दी थी। अगली तारीख में डिसीजन होगा, ये तय है। जज साहब ने कहा कि इसमें एक लाख से अधिक पेज हैं। बड़ा केस है। इसमें समय लगता है। किसी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। सबको न्याय मिले। अगली तारीख 31 जुलाई दी है। इसमें सभी को उपस्थित होना चाहिए।

ठाकुर ने कहा- सत्यमेव जयते पर मेरा पूर्ण विश्वास है। जिस व्यक्ति पर आरोप लगता है या तो वो जानता है या ईश्वर जानता है। सरकारी पक्ष की ओर से कैपिटल पनीशमेंट की मांग के सवाल पर प्रज्ञा ने कहा- एटीएस चाहती तो मेरी मुंडी उसी दिन मरोड़ देती। उनकी इतनी दुश्मनी है। पता नहीं क्यों है? मैं अधर्मियों के लिए उनकी दुश्मन हूं और हमेशा रहूंगी। जो देशविरोधी हैं…देश के गद्दार हैं, उनकी मैं दुश्मन हूं।

प्रज्ञा ठाकुर के वकील ने कहा- 31 जुलाई को मालूम पड़ जाएगा कि आरोपियों को कैसे फंसाया गया।

प्रज्ञा ठाकुर के वकील ने कहा- 31 जुलाई को मालूम पड़ जाएगा कि आरोपियों को कैसे फंसाया गया।



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